Merry Christmas 2025: दुनियाभर में 25 दिसंबर के दिन को क्रिसमस डे (Christmas Day) के तौर पर सेलिब्रेट किया जाता है। वैसे तो ये ईसाई धर्म का प्रमुख त्योहार है लेकिन लोकप्रियता के चलते अब हर धर्म के लोग खूब उत्साह के साथ क्रिसमस मनाने लगे हैं। इस दिन लोग चर्च जाते हैं, अपने घरों को सुंदर सजाते हैं, क्रिसमस ट्री लगाते हैं, केक काटते हैं, साथ ही दोस्तों और रिश्तेदारों के घर जाकर गिफ्ट्स के साथ उन्हें क्रिसमस की ढेरों बधाइयां भी देते हैं।
1.क्रिसमस का इतिहास क्या है?
क्रिसमस का इतिहास कुछ साल नहीं बल्कि सदियों पुराना है, कहा जाता है कि सबसे पहले क्रिसमस रोम देश में मनाया गया था। 25 दिसंबर का दिन क्रिसमस रोम में सूर्योदय के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता था। उस दौरान रोम के सम्राट सूर्य देव को अपना मुख्य देवता मानते थे और उनकी ही पूजा करते थे, लेकिन 330 ईसा पूर्व रोम में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार तेजी से बढ़ा। रोम में अधिक संख्या में ईसाई धर्म को ईसाई धर्म को मानने वाले लोग चले गए, जिसके बाद 336 ईस्वी में ईसाई धर्म के आधार पर ईसा मसीह को सूर्य देव का अवतार मान लिया गया और बाद में 25 दिसंबर के दिन ईसा मसीह की जयंती के रूप में क्रिसमस का त्योहार मनाया जाने लगा और अनुयायी से यह परंपरा शुरू हुई। लोग इस दिन को बुरे पर अच्छे की जीत के रूप में बनाते हैं। क्रिसमस का त्योहार ईसाई धर्म के लोगों के लिए नए साल में होता है। हर साल की तरह 25 दिसंबर को एक-दूसरे को त्योहार मनाया जाता है।
क्रिसमस का इतिहास
कैसे शुरू हुआ क्रिसमस?
मान्यताओं के अनुसार, प्रभु यीशु यानी जीसस क्राइस्ट का जन्म बैथलहम में मैरी और जोसेफ के घर हुआ था. सेक्सटस जूलियस अफ्रीकानस ने 221 ई. में पहली बार 25 दिसंबर को जीसस का बर्थडे सेलिब्रेट किया था. इसे क्रिसमस-डे कहने के पीछे भी एक कहानी है. दरअसल, रोमन लोग विंटर सोल्सटाइस के दौरान 25 दिसंबर को सूर्य के जन्मदिवस के रूप में मनाते थे. ऐसी भी मान्यताएं हैं कि मदर मैरी ने दुनिया के निर्माण की चौथी तारीख यानी 25 मार्च को गर्भधारण किया था. इसके 9 महीने बाद 25 दिसंबर को यीशु का जन्म हुआ.
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क्रिसमस डे मनाने के पीछे की कहानी
ईसाई धर्म की मान्यता के अनुसार प्रभु यीशु मसीह का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था। माना जाता है कि मरियम को एक सपना आया था, जिसमें उनके प्रभु के पुत्र यीशु को जन्म देने की भविष्यवाणी की गई थी। एक बार शादी के बाद मरियम और यूसुफ को बेथलहम जाना पड़ा। लेकिन उन्हें वहां कहीं रहने के लिए जगह नहीं मिली। देर रात होने की वजह से मरियम को बेथलहम में ही रुकना पड़ा। लेकिन वहां रुकने के लिए कोई ठीक जगह नहीं मिलने के कारण उन्होंने एक गौशाला में रुकने का फैसला किया। जहां मरियम ने प्रभु यीशु को जन्म दिया।
क्रिसमस दिवस का महत्व क्या है
क्रिसमस एक ऐसा त्यौहार है जो पश्चिम देशों के अलावा अन्य ईसाई बहुसंख्यक क्षेत्रों में मनाया जाता है लेकिन अब यह त्यौहार दुनिया भर में मनाया जाने लगा है। क्रिसमस के अवसर पर लोगों की ऐसी मान्यता है कि ईश्वर ने अपने पुत्रों को बुलाया था और ईसा मसीह ने लोगों को पाप से मुक्ति दिलाई और उनके स्वयं के प्राण त्यागने के लिए कहा था। क्रिसमस ट्री को जीवन की निरंतरता का प्रतीक माना जाता है. इसे ईश्वर की ओर से दिए जाने वाले लंबे जीवन के आशीर्वाद के रूप में देखा जाता रहा है.
- धार्मिक: यह ईसाई धर्म के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह यीशु मसीह के जन्म का प्रतीक है, जिन्होंने मानवता को पापों से बचाने और प्रेम, दया और क्षमा का संदेश देने के लिए जन्म लिया था।
- सांस्कृतिक: यह एक धर्मनिरपेक्ष अवकाश भी बन गया है, जो सभी धर्मों के लोगों द्वारा मनाया जाता है, जिसमें परिवार और दोस्त एक साथ आते हैं, उपहार साझा करते हैं और खुशियां मनाते हैं।
- नैतिक: यह आशा, एकजुटता, दया और ज़रूरतमंदों की मदद करने का संदेश देता है, जो यीशु की शिक्षाओं को दर्शाता है।
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2.क्रिसमस से सांता से क्या है कनेक्शन?
क्रिसमस पर सांता क्लोज भी खूब चर्चा में रहते हैं. माना जाता है कि, क्रिसमस की रात को सांता आते हैं और बच्चों को गिफ्ट देकर जाते हैं. कई जगहों पर तो क्रिसमस के मौके पर सांता कैरेक्टर भी देखने को मिलते हैं, जिसमें लाल और सफेद कॉस्ट्यूम, बड़ी दाढ़ी और टोपी पहनी होती है. सांता की कहानी शुरु होती है 280 ईशवी के दौरान तुर्की से. कहा जाता है कि, सांता जरूरतमंदो की मदद के लिए हर जगह घूमता रहता था. हालांकि, सांता और यीशु का आपस में कोई कनेक्शन नहीं है. बस इतना कहा जाता है कि, यीशु की मृत्यु के बाद सांता का जन्म हुआ था. जिसे क्रिसमस पर लोगों ने खुद ही जोड़ना शुरू कर दिया.करीब डेढ़ हजार साल पहले जन्मे संत निकोलस को असली सैंटा माना जाता है। संत निकोलस का जन्म तीसरी सदी में जीसस की मौत के 280 साल बाद मायरा में हुआ। बचपन में ही माता-पिता को खो देने की वजह से उनकी प्रभु यीशु में बहुत आस्था थी। वे बड़े होकर ईसाई धर्म के पादरी और बाद में बिशप बने। उन्हें जरूरतमंदों और बच्चों को गिफ्ट्स देना बहुत अच्छा लगता था। अपने दयालु स्वभाव के कारण संत निकोलस बहुत लोकप्रिय हुए। ऐसी मान्यता है कि सैंटा का घर उत्तरी ध्रुव पर है और वह उड़ने वाले रेनडियर की गाड़ी पर चलते हैं। हालांकि, सैंटा का यह आधुनिक रूप 19वीं सदी से अस्तित्व में आया। उससे पहले वे ऐसे नहीं थे। बच्चों के प्रति संत निकोलस का प्यार और उनके स्नेह की कथाएं विशेष रूप से दुनियाभर में प्रचलित होने लगीं और माना जाता है कि धीरे-धीरे संत निकोलस का नाम ही बिगड़कर सैंटा क्लॉज हो गया। संत निकोलस को एक गोलमटोल, हंसमुख बुजुर्ग के रूप में बताया गया है जो अपने उपहार आधी रात को ही देते थे, क्योंकि उन्हें उपहार देते हुए नजर आना पसंद नहीं था। वे अपनी पहचान लोगों के सामने नहीं लाना चाहते थे।
- रोमन लोगों की मान्यता, सूरज का जन्म
रोमन लोग मानते थे कि 25 दिसंबर को सर्दियों में सूर्य का जन्म होता है। एक और मान्यता यह भी है कि यीशु की माँ मैरी 25 मार्च को गर्भवती हुई थीं। नौ महीने बाद, 25 दिसंबर को यीशु का जन्म हुआ।
- सैंटा क्लॉज का असली नाम और कहानी
क्रिसमस पर यीशु का जन्म हुआ था, लेकिन इसे सैंटा क्लॉज के नाम से क्यों मनाया जाता है? सैंटा का असली नाम सांता निकोलस था। यह कहानी 280 ईस्वी में तुर्की में शुरू हुई। सांता उत्तरी ध्रुव में अपनी पत्नी मिसेज क्लॉज के साथ रहते थे। वे सफेद दाढ़ी वाले खुशमिजाज इंसान थे, जिनके दिल में दया भावना कूट-कूट कर भरी थी। संत निकोलस जरूरतमंद और बीमार लोगों की मदद करते थे।
- क्रिसमस डे पर क्रिसमस ट्री की सजावट
क्रिसमस के मौके पर लोग अपने घरों को सजाते हैं। उन्हें उम्मीद होती है कि सैंटा उन्हें ढेर सारे उपहार देंगे। क्रिसमस का त्यौहार बच्चों के लिए खास होता है। वे नए कपड़े पहनते हैं, मिठाइयां खाते हैं और खूब मस्ती करते हैं। क्रिसमस ट्री सजाना इस त्यौहार का खास हिस्सा है। लोग एक-दूसरे को उपहार देते हैं और क्रिसमस की शुभकामनाएं देते हैं। बच्चे सैंटा क्लॉज का बेसब्री से इंतजार करते हैं।
क्रिसमस ट्री
3.क्रिसमस की परंपरा
- क्रिसमस ट्री: सजावटी क्रिसमस ट्री क्रिसमस का मुख्य प्रतीक है. इसे रंग-बिरंगी लाइट्स, गेंदों और तारों से सजाया जाता है.
- सेंटा क्लॉज: सांता क्लॉज बच्चों को उपहार देने वाला प्रिय पात्र है. यह परंपरा सेंट निकोलस से प्रेरित है.
- सॉन्ग और कैरोल्स: क्रिसमस के मौके पर ‘जिंगल बेल्स’ और अन्य पारंपरिक गाने गाए जाते हैं.
- गिफ्ट्स और कार्ड्स: परिवार और दोस्तों के बीच उपहारों और क्रिसमस कार्ड्स का आदान-प्रदान किया जाता है.
- प्रार्थना: चर्च में विशेष प्रार्थना सभाएं आयोजित होती हैं, जिनमें यीशु मसीह की शिक्षा और जीवन को याद किया जाता है.
- खान-पान: क्रिसमस के अवसर पर केक, कुकीज और विशेष भोजन तैयार किए जाते हैं
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1.क्रिसमस का असली नाम क्या है
1853 के एक पत्रिका लेख में, ब्रिटिश पाठकों के लिए अमेरिकी क्रिसमस रीति-रिवाजों का वर्णन करते हुए, बच्चों द्वारा क्रिसमस की पूर्व संध्या पर अपने मोज़े लटकाने का ज़िक्र है, जिसका नाम अलग-अलग है: पेंसिल्वेनिया में उसे आमतौर पर “क्रिशकिंकल” कहा जाता है, लेकिन न्यूयॉर्क में उसे “सेंट निकोलस” या “सांता क्लॉज़” कहा जाता है।
2.25 दिसंबर को क्या हुआ था?
25 दिसंबर को मुख्य रूप से ईसा मसीह (यीशु) का जन्मोत्सव (क्रिसमस) मनाया जाता है, जो ईसाई धर्म का प्रमुख त्योहार है, और इसी दिन रोम में 336 ईस्वी में पहली बार इसे मनाया गया था, जिसे बाद में पोप जूलियस ने आधिकारिक रूप दिया
3.क्रिसमस की सच्ची कहानी क्या है?
यीशु के जन्म की कहानी की उत्पत्ति कहाँ से हुई? इसका कुछ अंश बाइबल में मिलता है। मत्ती के सुसमाचार में ज्ञानी पुरुषों और बेथलहम के तारे का उल्लेख है, जबकि लूका के सुसमाचार में विस्मय से भरे चरवाहों का वर्णन है और बताया गया है कि यीशु का जन्म एक अस्तबल में हुआ था क्योंकि सभी सराय भरी हुई थीं।
4.क्रिसमस शब्द की उत्पत्ति क्या है?
कैथोलिक विश्वकोश के अनुसार, क्रिसमस शब्द की उत्पत्ति “क्रिस्टेस मैसे” वाक्यांश से हुई है , जो पहली बार 1038 में दर्ज किया गया था, जिसका अर्थ है मसीह का मास या मसीह का मास
5.क्रिसमस धर्म के संस्थापक कौन थे?
ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह के जन्मोत्सव, क्रिसमस, को दुनिया भर में कई अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, ईसाइयों द्वारा भी और ईसाई धर्म को न मानने वालों द्वारा भी