मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1552 में हुआ था। मंदिर का जीर्णोद्धार वास्तुकला विभाग द्वारा कराया गया है। मंदिर का स्थापत्य कला भी बेजोड़ है। गर्भगृह और मंडप एक आकर्षक प्रांगण के साथ किलेबंद हैं, जिसे 18 वीं शताब्दी के अंत में मराठा काल में बनाया गया था।
पहाड़ों की शृंखला में स्थित है
मंदिर:रतनपुर धर्मनगरी है. रतनपुर को देवी और आस्था की नगरी के रूप में भी जाना जाता है. यहां विराजी मां महामाया देवी पहाड़ों की शृंखला में सिद्ध शक्तिपीठ विराजमान है. देवी आस्था का केंद्र रतनपुर मां महामाया मंदिर में तीनों ही देवियों की पूजा होती है. यह दुनिया एक मात्र एक ऐसा मंदिर है, जहां गर्भ गृह के नीचे महामाया यानी धन की देवी लक्ष्मी विराजमान है, वहीं उनके दाहिने तरफ ऊपर की ओर ज्ञान की देवी मां सरस्वती विराजित हैं.
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आदिशक्ति महामाया धाम का गौरवशाली इतिहास
बिलासपुर नगर की गोद में बसा ऐतिहासिक ग्राम नगोई अपने गर्भ में अध्यात्म और इतिहास के अनेक रहस्यों की कहानी कहती है. मंदिरों, तालाबों और कुछ भग्नावशेषों को समेटे इसकी प्राचीनता एवं अस्मिता की अनेक किवदंतियां भी बुजुर्गों से सुनने को मिलती हैं. मंदिरों, तालाबों से परिपूर्ण इस गांव में अध्यात्म की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण 12 वीं शताब्दी में निर्मित मां महामाया का मंदिर है. नगोई के रहने वाले बृजेश शास्त्री ने बताया कि नगोई को प्राचीन काल में रतनपुर राज्य की उप राजधानी के रूप में नवगई के नाम से बसाया गया था. जिसका नाम कालांतर में बदलते हुए नौगई तथा वर्तमान में नगोई हो गया.
संरक्षक की भूमिका में हैं काल भैरव
मंदिर के संरक्षक की भूमिका में काल भैरव को माना जाता है। राजमार्ग पर महामाया मंदिर के ही रास्ते पर काल भैरव का मंदिर स्थित है। आम धारणा यही है कि महामाया मंदिर जाने वाले तीर्थ यात्रियों को अपनी तीर्थयात्रा पूरी करने के लिए काल भैरव मंदिर में पूजा अर्चना करनी पड़ती है।
नवरात्रि में आते हैं लाखों भक्त
नवरात्रि में रतनपुर शहर ऊपर से नीचे तक सजा रहता है. अष्टमी के दिन यहां दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु हर वर्ष आसपास के क्षेत्रों से पैदल चलकर आते हैं और माता से मनोकामना मांगते हैं. यहां पहुंचने के लिए सड़क, रेल या वायु मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है. यह मंदिर बिलासपुर शहर से 25 किलोमीटर की दूरी पर है. रतनपुर के लिए हर एक घंटे में बस सेवा उपलब्ध है. बिलासपुर रेलवे स्टेशन से भी रतनपुर की दूरी 25 किलोमीटर है. इसी तरह से वायु मार्ग से यह स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट, रायपुर से 141 किलोमीटर की दूरी पर है.
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रतनपुर में क्यों होती है पूजा?
तारकेश्वर महाराज बताते है कि मूर्ति स्थापना की कथा भी काफी पौराणिक और दिलचस्प है. 10वीं -11वीं शताब्दी में रतनपुर के राजा रत्नदेव के पुत्र पृथ्वी देव को कोढ़ जैसी गंभीर बीमारी ने जकड़ रखा था. उनके स्वप्न में हनुमान जी आये और मां महामाया मंदिर कुंड अंदर से उनके मूर्ति को निकालकर स्थापित करने और मंदिर के ठीक पीछे तालाब खोदकर उसमें स्नान करने कहा. महाराज बताते हैं कि जिस स्थान पर भी मूर्ति की स्थापना की जाती थी, वहां वह मूर्ति टिकती नहीं थी. 10 जगहों के बाद यह 11वां जगह है जहां मूर्ति स्थापित हुई.
नारी रूप में पूजे जाने का रहस्य
मुख्य पुजारी तारकेश्वर महराज बताते हैं कि राम-रावण युद्ध के समय जब श्रीराम और लक्ष्मण जी सो रहे थे, तब छल से पाताल लोक का नरेश अहिरावण उन्हें उठाकर पाताल लोक ले गया. अहिरावण अपनी कामदा देवी के सामने राम-लक्ष्मण का बली चढ़ाने वाला था. हनुमान जी राम-लखन को ढूंढते पाताल लोक पहुंचे और कामदा देवी की मूर्ति में प्रवेश कर गए. जैसे ही अहिरावण बली चढ़ाने देवी के चरणों में झूका, वैसे ही हनुमान जी, जो कि कामदा देवी स्वरूप में थे, अहिरवार को अपने बाएं पैर से दबाकर उसका वध कर दिए और राम-लखन को अपने दोनों कंधों में बिठा लिए. उस दिन से उन्हें यह स्वरूप मिला.
रतनपुर प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ की राजधानी थी:रतनपुर प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ की राजधानी थी और यहां राजा रत्नदेव राज करते थे. प्राचीन काल में रतनपुर का नाम रत्नपुर था. कहा जाता है कि करीब 8 सौ साल पहले रत्नपुर में अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी और लोगों को खाने के लिए दाने दाने के लिए तरसना पड़ रहा था. तब राजा रत्न को राज पुरोहित ने कहा कि धन धान्य और ऐश्वर्य की देवी का मंदिर बनवाएं तो यह समस्या दूर हो जाएगी. तब मंदिर का निर्माण कराकर यहां देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित की गई.
रतनपुर कैसे पहुंचे
हवाईजहाज से
बिलासपुर (37 किमी) निकटतम हवाई अड्डा है जो दिल्ली, भोपाल, जबलपुर और प्रयागराज से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है और रायपुर (159 किमी) हवाई अड्डा मुंबई, दिल्ली, नागपुर, हैदराबाद, कोलकाता, बेंगलुरु, विशाखापत्तनम और चेन्नई से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
ट्रेन से
रतनपुर के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन बिलासपुर (25 किमी) है।
सड़क द्वारा
बिलासपुर से रतनपुर तक हर एक घंटे पर बसें उपलब्ध हैं।
कहाँ कहाँ घूमें:
महामाया मंदिर
लखनी देवी मंदिर
भैरव बाबा मंदिर
वृद्धेश्वरनाथ (बुढ़ामहादेव ) मंदिर
श्री गिरजाबंध हनुमान मंदिर
रामटेकरी (रामजानकी ) मंदिर
सिद्धिविनायक मंदिर
खूंटाघाट (संजय गाँधी ) जलाशय
जाने का समाय:
वैसे रतनपुर (Ratanpur) साल के सारे माह में जाया जा सकता है पर सबसे अच्छा मौसम बरसात और ठण्ड का होता है। बरसात के मौसम में संजय गाँधी (खूंटाघाट) जलाशय का नजारा सबसे ज्यादा आनन्दित करने वाला होता है। रतनपुर (ratanpur) को तालाबों का शहर भी कहा जाता है, बरसात में यहाँ चारों तरफ पानी ही पानी नजर आता है जो की हमारे अनुभव को और अच्छा बना देता है बरसात के मौसम के कारण चारों तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आती हैं।
रतनपुर (Ratanpur) में पर्व :
चैत्र नवरात्रि , कुंवार नवरात्रि में माता रानी के दर्शन के लिए पुरे देश से लोग रतनपुर (Ratanpur) आते हैं, इस समय यहाँ मेले का आयोजन भी होता है।