best top 10 temples in chhattisgarh छत्तीसगढ़ के सर्वश्रेष्ठ शीर्ष 10 मंदिर

छत्तीसगढ़ आस्थाओं वाला राज्य है. यहां कई मंदिर हैं. कुछ मंदिरों की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली है. नतीजतन दूर-दराज से भी लोग इन मंदिरों के दर्शन करने आते हैं. आप भी कभी छत्तीसगढ़ घूमने का प्लान बनाएं तो इन मंदिरों के दर्शन करना न भूलें. आज हम आपको ऐसे 5 मंदिरों के बारे में बताएंगे जो छत्तीसगढ़ में सबसे महत्त्वपूर्ण और खूबसूरत हैं.छत्तीसगढ़ राज्य अपने भव्य सुन्दरता ऐतिहासिक पर्यटन स्थल के नाम से मशहूर है यहां देश सुन्दर दृश्य और प्रस्तुत के लिए जाना जाता है तो आइए ऐसे ही सुंदर पर्यटन स्थल की यात्रा करने के लिए इस ब्लॉक में बने रहिए 

चंद्रहासिनी देवी मंदिर

• राजीव लोचन मंदिर

• दंतेश्वरी मंदिर

• भोरमदेव मंदिर

• डोंगरगढ़

छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध मंदिर 

 1.चंद्रहासिनी देवी मंदिर छत्तीसगढ़ के शीर्ष पर्यटन स्थलों में से एक चंद्रहासिनी देवी मंदिर में मां चंद्रहासिनी के कई भक्त आते हैं यहां पूजनीय मंदिर राज्य के जांजगीर-चांपा जिले में स्थित महानदी के तट पर स्थित इस मंदिर में 8 हाथों वाली देवी को दर्शाया गया

2.डोंगरगढ़ की बमलेश्वरी देवी:- राजनांदगांव जिलान्तर्गत 25 कि.मी पर स्थित दक्षिण-पूर्वी रेल्वे के डोंगरगढ़ स्टेशन में ट्रेन से उतरते ही सुन्दर पहाड़ी उसमें छोटी छोटी सीढ़ियां और उसके उपर बमलेश्वरी देवी का भव्य मंदिर का दर्शन कर मन प्रफुल्लित हो श्रद्धा से भर उठता है। प्राचीन काल में यह कामावती नगर के नाम से विख्यात् था। यहां के राजा कामसेन बड़े प्रतापी और संगीत कला के प्रेमी थे। राजा कामसेन के उपर बमलेश्वरी माता की विशेष कृपा थी।उन्हीं की कृपा से वे सवा मन सोना प्रतिदिन दान किया करते थे। उनके राज दरबार में कामकंदला नाम की अति सुन्दर राज नर्तकी थी। कामकंदला वास्तव में एक अप्सरा थी जो शाप के कारण पृथ्वी में अवतरित हुई थी। राजनर्तकी को यहां कुंवारी रहना पड़ता था। इस राज दरबार में माधवानल जैसे कला और संगीतकार भी थे। एक बार राजदरबार में दोनों का अनोखा समन्वय देखने को मिला और राजा कामसेन उनकी संगीत साधना से इतने प्रभावित हुए कि वे माधवानल को अपने गले का हार दे दिये।

मगर माधवानल ने इसका श्रेय कामकंदला को देते हुए उस हार को उसे पहना देता है। इससे राजा अपने को अपमानित महसूस किये और गुस्से में आकर माधवानल को देश निकाला दे दिया। इधर कामकंदला उनसे छिप छिपकर मिलती रही। दोनों एक दूसरे को प्रेम करने लगे थे लेकिन राजा के भय से सामने नहीं आ सकते थे। फिर उन्होंने उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की शरण में गया और उनका मन जीतकर उनसे पुरस्कार में कामकंदला को राजा कामसेन से मुक्त कराने की बात कही।

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3.राजीव लोचन मंदिर भगवान विष्णु का पूजा स्थल राजीव लोचन मंदिर महाकौशल की वास्तुकला को महत्वपूर्ण रूप से दर्शाता है यह मंदिर आठवीं सदी में बनाया था और अब राजिम शहर में मौजूद हैं इसमें भगवान नरसिंह, भगवान विष्णु ,भगवान  राम,और देवी दुर्गा ,सहित कई देवी-देवताओं की नक्काशी वाले 12 स्तंभ है यहां तीनों नदियों – महाननदी सोंधू  नदी ,और  पेयरी नदी के संगम पर स्थित है चैत्य मेहराबदार लड़की के  रूपाकन इस मंदिर का आकर्षण है मंदिर  के प्रवेश द्वार को नाग देवी की मूर्तियों से सजाया गया हैं जो आपकी  आंखों को चका चौंध कर सकती हैं

4.राजीव लोचन मंदिर (Rajiv lochan Temple)

राजीव लोचन मंदिर, छत्तीसगढ़ के राजिम में स्थित है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण नल वंश के शासन काल में किया गया था। हालांकि, कई लोगों का मानना है कि इसका निर्माण 8वीं-9वीं शताब्दी के बीच में हुआ था। राजीव लोचन मंदिर परिसर में कुलेश्वर महादेव मंदिर है,भगवान शिव को समर्पित है।  सावन के सोमवार से लेकर सावन की शिवरात्रि और महाशिवरात्रि के मौके पर सबसे अधिक संख्या में भक्त पहुंचते हैं।

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5. दंतेश्वरी मंदिर –  मां दंतेश्वरी को समर्पित दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा के जगदलपुर शहर में 84 किलोमीटर दूर है मंदिर के राजाओं द्वारा बनवाए जाने और उनमें से एक होने के लिए मान्यता प्राप्त है भारत के 52 शक्ति पीठ छत्तीसगढ़ के लोगों की दृष्टि में देवी दंतेश्वरी बस्तर राज्य की कुलदेवी हैं जो यहां के लोगों की शांति  और स्वास्थ्य को बनाए रखती हैं

6.भोरमदेव मंदिर भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ कबीरधाम जिले में स्थित 1000 साल पुराना मंदिर है क्या मंदिरों की चमकदार मूर्तियों के साथ बनाए गए हैं कोणार्क सूर्य मंदिर और खजुराहो मंदिर या धार्मिक स्थल भगवान शिव को समर्पित है छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से विख्यात कीटों के समूह के अपनी शानदार सुंदरता से पर्यटकों का मन मोह लेते हैं

7.चंद्रपुर की चंद्रसेनी देवी:-महानदी और मांड नदी से घिरा चंद्रपुर, जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत रायगढ़ से लगभग 32 कि.मी., सारंगढ़ से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां चंद्रसेनी देवी का वास है। किंवदंति है कि चंद्रसेनी देवी सरगुजा की भूमि को छोड़कर उदयपुर और रायगढ़ होते हुये चंद्रपुर में महानदी के तट पर आ जाती हैं। महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर यहां पर वह विश्राम करने लगती हैं।वर्षों व्यतीत हो जाने पर भी उनकी नींद नहीं खुलती। एक बार संबलपुर के राजा की सवारी यहां से गुजरी और अनजाने में चंद्रसेनी देवी को उनका पैर लग जाता है और उनकी नींद खुल जाती है। फिर स्वप्न में देवी उन्हें यहां मंदिर निर्माण और मूर्ति स्थापना का निर्देश देती हैं।

संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिर निर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख मिलता है। देवी की आकृति चंद्रहास जैसे होने के कारण उन्हें ‘‘चंद्रहासिनी देवी’’ भी कहा जाता है। इस मंदिर की व्यवस्था का भार उन्होंने यहां के जमींदार को सौंप दिया। यहां के जमींदार ने उन्हें अपनी कुलदेवी स्वीकार करके पूजा अर्चना करने लगा।

8. डोंगरगढ़ देवताओं का निवास डोंगरगढ़ एक लोकप्रिय तीर्थ स्थल है जहां व्यक्ति अपने मन को शांत करने के लिए शांतिपूर्ण और अतंत सुंदरता को अपनी ओर आकर्षित करती है

लगभग 1600 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक पहाड़ी मंदिर है मां बमलेश्वरी को समर्पित है इस मंदिर में आसपास के क्षेत्रों के भक्त आते हैं नवरात्रों के दौरान उत्सव के दौरान आयोजित होने वाले मेलों के कारण आगंतुकों को रोमांचित करता है

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